धर्मशाला/शिमला : मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल बैठक में हिमाचल प्रदेश सरकार ने विभिन्न विभागों में 3,700 पदों को भरने का निर्णय लिया है। इन पदों को एक वर्ष के भीतर चरणबद्ध तरीके से भरा जाएगा। बैठक में रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यटन क्षेत्रों से जुड़े कई अहम फैसले लिए गए।
बैठक में तय किया गया कि हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड लिमिटेड में 1,602 बिजली उपभोक्ता मित्र और 1,000 टी-मेट नियुक्त किए जाएंगे। राज्य कैडर में 645 पटवारियों और विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में 400 स्टाफ नर्सों की भर्ती जॉब ट्रेनी आधार पर की जाएगी। इसी तरह 300 पंचायत सचिव और 200 मेडिकल ऑफिसर भी जॉब ट्रेनी के रूप में नियुक्त होंगे। मेडिकल कॉलेजों में कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, यूरोलॉजी और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभागों में 38 सहायक प्रोफेसर पद सृजित करने का निर्णय लिया गया है। इसके साथ ही राज्य सचिवालय में 25 स्टेनो-टाइपिस्ट और पर्यावरण विभाग में 5 नए पदों के सृजन को मंजूरी दी गई है। लोकायुक्त कार्यालय में 2 जेओए (आईटी) पद भी बनाए जाएंगे।
स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए कैबिनेट ने 9 जिलों के 28 आदर्श स्वास्थ्य संस्थानों में डायलिसिस केंद्र स्थापित करने की मंजूरी प्रदान की। यह सुविधा भविष्य में उन अन्य संस्थानों में भी शुरू की जाएगी जहां ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इससे मरीजों को प्रदेश से बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और सरकारी क्षेत्र में सस्ती चिकित्सा मिल सकेगी।
पर्यटन और होम स्टे को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री स्टार्ट-अप योजना शुरू करने का फैसला किया गया है। इसके तहत नए होम स्टे बनाने या पुराने को अपग्रेड करने के लिए लिए गए ऋणों पर ब्याज में राहत दी जाएगी। शहरी क्षेत्रों में तीन प्रतिशत, ग्रामीण क्षेत्रों में चार प्रतिशत और जनजातीय क्षेत्रों में पांच प्रतिशत अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा।
प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए मॉडल उप-नियमों को मंजूरी दी गई है। अब निर्माण कार्य नदियों और नालों से तय दूरी पर और मानकों के अनुरूप ही किया जा सकेगा।
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े एक फैसले में सात डिनोटिफाई कॉलेजों के 45 शिक्षक और 61 गैर-शिक्षक कर्मचारियों को उच्च शिक्षा निदेशालय के सरप्लस पूल में स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई है।
कैबिनेट ने चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट के लिए भी राहत का रास्ता तलाशा है। इसके तहत स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (एलएडीएफ) का 10 प्रतिशत हिस्सा अब हर साल सरकार की तरफ से गोद लिए गए निराश्रित बच्चों की मदद में खर्च किया जाएगा। इससे उन्हें बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो सकेंगी।