काठमांडू: नेपाल इन दिनों गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी ओली को अचानक इस्तीफा देना पड़ा और सेना के समर्थन से पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की की अंतरिम सरकार बनी। तेज़ घटनाक्रम ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या इसके पीछे अमेरिका की गुप्त भूमिका रही है।
दो दिन में बदली तस्वीर
सरकार द्वारा लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के बाद विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। ये प्रदर्शन नेपाल की Gen Z पीढ़ी (18-28 वर्ष) के नेतृत्व में तेजी से हिंसक हो गए। देखते ही देखते हालात बिगड़ गए और दो दिनों में ही ओली को पद छोड़ना पड़ा। इस बवाल में 70 लोगों की मौत और हजारों घायल हुए।
CIA का पुराना पैटर्न?
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ओली सरकार का पतन महज़ आंतरिक विरोध का नतीजा नहीं हो सकता। अतीत में भी नेपाल में CIA के हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं। 1960 के दशक में अमेरिका ने नेपाल में बसे तिब्बती शरणार्थियों को हथियार और ट्रेनिंग देकर चीन विरोधी गतिविधियों में लगाया था। 9/11 के बाद अमेरिका ने माओवादी विद्रोहियों को आतंकवादी घोषित कर नेपाल को हजारों M-16 राइफलें और सैन्य मदद दी थी।
सुशीला कार्की की नियुक्ति पर सवाल
सेना द्वारा सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने से शक और गहरा गया। किसी राजनीतिक नेता की जगह जज को चुनना संकेत देता है कि शायद इस सत्ता परिवर्तन पर विदेशी दबाव काम कर रहा है। अभी तक CIA की सीधी भूमिका के सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन परिस्थितियां संकेत देती हैं कि वॉशिंगटन की परछाई ज़रूर मौजूद है।
क्यों दिलचस्पी रखता है अमेरिका?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका हमेशा नेपाल को चीन के खिलाफ रणनीतिक बफ़र ज़ोन मानता है। यही कारण है कि वह उन सरकारों को कमजोर करता है जो उसकी नीतियों से मेल नहीं खातीं। यही पैटर्न हाल ही में बांग्लादेश में भी देखने को मिला था, जहां शेख हसीना के पतन को अमेरिका की मौन सहमति से जोड़ा गया।
ओली सरकार का पतन और उठते सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में कोई बड़ा नेपाली नेता सामने नहीं आया। पत्रकारों और अधिकारियों का मानना है कि इतनी बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल बिना गुप्त विदेशी समर्थन के संभव नहीं। हालांकि, अभी तक ठोस सबूतों का अभाव है।