कालका: कभी अंग्रेज अफसरों से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों तक को पहाड़ों की ओर ले जाने वाला करीब 120 वर्ष पुराना भाप इंजन अब एक बार फिर यात्रियों को इतिहास की ओर लौटाने की तैयारी में है। यह विंटेज स्टीम इंजन, जो कालका-शिमला रेलमार्ग की पहचान रहा है, विभाग जल्द उसे दोबारा ट्रैक पर उतारने की तैयारी कर रहा है। उत्तर रेलवे ने इस ऐतिहासिक धरोहर को विशेष मांग पर दोबारा चलाने की योजना बनाई है। फिलहाल इंजन को मुरम्मत और संपूर्ण मेंटेनेंस के लिए रेवाड़ी वर्कशॉप भेजा गया है। मरम्मत के बाद इसे पहले की तरह 'ऑन डिमांड' चलाया जाएगा। यह जानकारी अंबाला रेलवे मंडल के सीनियर डीसीएम नवीन कुमार ने दी है।
विश्व धरोहर में शामिल कालका-शिमला रेलमार्ग पर यह स्टीम इंजन सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है। 1905 में पहली बार जब यह इंजन शिमला की ओर गया था, तब हिमालय की गोद में जाने का यही सबसे रोमांचक साधन हुआ करता था। करीब 1970 तक इसकी सीटी पहाड़ों में गूंजती रही, फिर डीजल इंजन के आने से यह विरासत धीरे-धीरे लुप्त हो गई। दिलचस्प बात यह है कि यही ऐतिहासिक इंजन 1945 में महात्मा गांधी को शिमला लेकर गया था, जब देश की आजादी से जुड़ी निर्णायक वार्ताएँ चल रही थीं। माना जाता है कि उस दौर की सरगर्मियाँ, पहाड़ियों का सफर और गांधी-वेवेल मुलाकातों की गूंज आज भी इस इंजन में दर्ज है। अब जब यह धरोहर दोबारा ट्रैक पर दौड़ेगी तो यात्रियों को केवल सफर का अहसास नहीं, बल्कि समय से पीछे ले जाने वाला एक जीवंत अनुभव मिलेगा।